अमृ ता रहेगी ज़िंदा...
माथे सजाये
सूरज की
ओजस्वी बिंदिया
कंठ पहने
चाँद तारों का
शुभ्र शीतल कुन्दनहार
वक़्त की
ड्योढ़ी में बैठी
अपने रूहानी चरखे पर
शब्दों के
तकुवे से
ख्वाबों की
इंद्रधनुषीय
पूनी कातती
ज़िन्दगी के
कैनवस पर
रस रंग बन
हर पल
झूमती बरसती
कविता को
जीवन बनाने की
तपस्या करती
जीवन को
कविता करने की
ज़ुर्रत करती
कभी'रोमांटिक',कभी'मिस्टिक'
कभी मॉडर्न बन
सबको हैराती,भरमाती
कभी तन,कभी मन
कभी आत्मा_
कितना कुछ
भिगो जाती
साईं की
दरगाह पर
बनकर
अगरबत्ती जलती
शिव की
बाईं बगल बैठ
पार्वती का नृत्य देखती
दूर वादियों में गूंजती
कृष्ण की बांसुरी सुनती
इबादत को
महोब्बत का
इन्सानी जज़्बा
अता करती
महोब्बत को
इबादत की
बुलंदियां देती
वारिस शाह से
दर्द भरे सवाल पूछती
सारा शगुफ्ता को
गोद ले सहलाती दुलराती
निढाल मानवता का
माथा चूमती
लहू_लुहान जम्हूरियत के
ज़ख्मों पर मरहम रखती
बच्चों को,पेड़ों को
फलने फ़ूलने की
दुआएं देती
लाचार औरतों के
कैदी लबों को
आज़ादी की
सदायें देती
चेतन,अचेतन
महाचेतन का
अद्भुत संसार रचती
अमृता उस दुनिया की
औरत थी
जिसमें रहना चाहती है
स्त्री कीअन्तश्चेतना
अमृता नहीं थी
सिर्फ कविता
वह है
एक महाकाव्य
पानी,हवा,आग
आकाश,मिट्टी_सब जगह
छलकेगी,महकेगी
अमृता रहेगी
हमेशा ज़िंदा
सिर्फ इमरोज़ की
नज़्मों और कैनवस
में ही नहीं
हम सब की
इबादतों और मोहब्बतों में...
रश्मि बजाज,Rashmi Bajaj