बुद्धं शरणं गच्छामि,प्रेमं शरणम् गच्छामि।
मित्रों ,बाबा अम्बेडकर द्वारा 20 नवम्बर 1956 को काठमांडू में चतुर्थ विश्व बौद्ध सम्मेलन के अवसर पर दिए गए ऐतिहासिक प्रवचन में हमारे समय के यक्षप्रश्न का उत्तर मिलता दीख पड़ता है।
"बुद्ध अपने सिद्धांतों के अनुपालन के लिये समझाने, बुझाने,नैतिक- शिक्षा और स्नेह का सहारा लेते हैं।वे अपने विरोधियों को प्रेम से जीतते हैं,शक्ति से नहीं।बुद्ध कभी भी हिंसा की अनुमति नहीं देते...सबसे बड़ी चीज जो बुद्ध ने दुनिया को बताई कि हम तब तक लोगों में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते जब तक हम लोगों की मानसिकता को परिवर्तित न कर दें... मुझे पूरा विश्वास है कि लोगों में बुद्ध का दसवां हिस्सा भी स्वतः जागृत हो जाये तो वही परिवर्तन हम प्रेम,न्याय और भाईचारे के साथ ला सकते हैं।
भवतु सब्बमंगलम।"