जान लो-
एक दिन
खोलने ही होँगे
सब दरवाज़े,
सारे द्वार,
मस्जिदों,मन्दिरों के!
देख लो-
बन चले हैं
परचम,झंडे
ये घूंघट,ये बुर्के!
दरकने लगी हैं मीनारें!!
थरकने लगी है दीवारें!!
लिए नई अज़ानें
नई आरतियां
वक्त के
गर्भ से
जन्म लेने को
छटपटा रहा है
हमारा नया सूरज...
- रश्मि 'कबीरन'