1. *कहत कबीरन*
बरसती हों
जब हरसू
कातिलाना नफ़रतें
तो प्रेम पर
कविता लिखना
रूमानियत नहीं
एक बगावत है!
ये बगावत
मेरे दौर की
लाज़मी ज़रूरत है!
2.*पैरहन*
उस रात
मनु,मार्क्स
अल्लाह,राम
के पैरहन उतार
टांग दिये थे
जब हमने
खूंटी पर-
तो जिस्म ही नहीं
महक उठी थीं
हमारी रूहें भी…
3.'नहीं है'
ज़िन्दगी की
किताब में
महका करते हैं
वही हरफ़,वही वरक
जो लिखे गए हैं
महोब्बत की
भीनी ख़ुशबू से
ज़िन्दगी नहीं है
पंचनामा
तवारीख़ या
सियासत का!
-रश्मि 'कबीरन'