Thursday, 13 April 2017

"अम्बेडकर एवं नैतिक अहिंसक क्रांति "

बुद्धं शरणं गच्छामि,प्रेमं शरणम् गच्छामि।

मित्रों ,बाबा अम्बेडकर द्वारा 20 नवम्बर 1956 को काठमांडू में चतुर्थ विश्व बौद्ध सम्मेलन के अवसर पर दिए गए ऐतिहासिक प्रवचन में हमारे समय के यक्षप्रश्न का उत्तर मिलता दीख पड़ता है।

"बुद्ध अपने सिद्धांतों के अनुपालन के लिये समझाने, बुझाने,नैतिक- शिक्षा और स्नेह का सहारा लेते हैं।वे अपने विरोधियों को प्रेम से जीतते हैं,शक्ति से नहीं।बुद्ध कभी भी हिंसा की अनुमति नहीं देते...सबसे बड़ी चीज जो बुद्ध ने दुनिया को बताई कि हम तब तक लोगों में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते जब तक हम लोगों की मानसिकता को परिवर्तित न कर दें... मुझे पूरा विश्वास है कि लोगों में बुद्ध का दसवां हिस्सा भी स्वतः जागृत हो जाये तो वही परिवर्तन हम प्रेम,न्याय और भाईचारे के साथ ला सकते हैं।

भवतु सब्बमंगलम।"

Thursday, 12 January 2017

SWAMI VIVEKANANDA _THE REVOLUTIONARY MONK EPITOMIZING POSSIBILITIES OF BLOODLESS SOCIO_CULTURAL REVOLUTION

GRATEFULLY REMEMBERING SWAMI VIVEKANANDA _ THE REVOLUTIONARY MONK_  EPITOMIZING THE POSSIBILITIES OF BLOODLESS  SOCIO_CULTURAL REVOLUTION.( Very relevant in our times when nothing/no ideology/revolution seems to really work!)

अहिंसक,आध्यात्मिक क्रांति द्वारा सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति के प्रणेता को कृतज्ञतापूर्ण नमन!

रोमा रोलां के शब्दों में 'आध्यात्मिक जगत के नैपोलियन',महान भारतीय आध्यात्मिक मनीषी जिसने उस  रूढ़िवादी कठिन समय में वंचितों,दलितों,शूद्रों,स्त्रियों के पक्ष में अपनी  सशक्त आवाज़ बुलंद की और आध्यात्मिक क्रांति की मानवतावादी संभावनाओं को  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया।

                  *क्रांतिकारी प्ररेणादायक विचार*

"दो बड़े सामजिक अनर्थ भारत की प्रगति में रोड़ा अटका रहे हैं।ये दो कुत्सित अनाचार हैं-स्त्रीजाति के पैरों में पराधीनता की बेड़ी डाले रखना,निर्धन जनता को जातिभेद के नाम पर समस्त मानवी अधिकारों से वंचित रखना..."

"स्मृति आदि लिख कर,नियम-नीति में आबद्ध करके इस देश के पुरुषों ने स्त्रियों को एकदम बच्चा पैदा करने की मशीन बना डाला है...तुम्हारी जाति का जो इतना अधोपतन हुआ है,उसका प्रधान कारण है इन सब शक्ति-मूर्तियों का अपमान करना..."

"हमारे अभिजात पूर्वज साधारण जन समुदाय को ज़माने से पैरों तले कुचलते रहे।इसके फलस्वरूप वे बिचारे एकदम असहाय हो गए।यहां तक कि  वे स्वयं को मनुष्य मानना भूल गए..."

"तुम्हारे पितृपुरुष दो दर्शन लिख गए हैं,दस काव्य तैयार कर गए हैं,दस मंदिर उठवा गए हैं और तुम्हारी बुलंद आवाज़ से आकाश फट रहा है; और जिनके रुधिर-स्राव से मनुष्य-जाति की यह जो कुछ उन्नति हुई है,उनके गुणों का गान कौन करता है...भारत के हमेशा के पैरों तले कुचले हुए श्रमजीवियों-तुम लोगों को मैं प्रणाम करता हूँ"

विवेकानंद  जी के अनुसार  आवश्यक सामाजिक क्रांति का माध्यम आत्मज्ञान तथा अध्यात्म हैं-

"जात-पात का भेदछोड़ कर,हर स्त्री-पुरुष को,प्रत्येक बालक -बालिका को  यह सन्देश सुनाओ कि सभी-स्त्री-पुरुष,अमीर-हगरींब,बडे-छोटे ,ऊंच-नीच ,सभी में उसी एक अनंत आत्मा का निवास है जो सर्वव्यापी है,इसीलिए सभी लोग महान एवं साधु हो सकते हैं।कोई भी दुर्बल नहीं है...आत्मा अनन्त, सर्वशक्तिसम्पन्न,सर्वज्ञ है।जीवात्मा को नींद से जाग दो,जब तुम्हारी जीवात्मा प्रबुद्ध हो कर सक्रिय हो उठेगी,तब तुम आप ही शक्ति का अनुभव करोगे,महिमा और महत्ता पाओगे,साधुता आयेगी ,पवित्रता भी आप ही चली आयेगी...आओ हम प्रत्येक व्यक्ति में घोषित करें-उठो,जागो,जब तक तुम ध्येय तक नहीं पहुंच जाते,तब तक चैन न लो..."

"अज्ञान से ही हम परस्पर घृणा करते हैं,अज्ञान से हम एक दूसरे को जानते नहीं और इस लिए प्यार नहीं करते।जब हम एक दूसरे  को जान लेंगे ,निश्चय ही प्रेम का उदय होगा..."

REVOLUTION THROUGH LOVE AND CHANGE OF  HEART! IS IT WORTHTRYING IN OUR TIMES  AS WE DONT HAVE MANY OPTIONS  LEFT ON THIS DANGEROUS DISENCHANTED DESPERATE DEADLY PLANET OF OURS TODAY!

Tuesday, 3 January 2017

REAL TRIBUTE TO SAVITRIBAI PHULE:RASHMI BAJAJ

REAL TRIBUTE TO SAVITRIBAI PHULE: DEPOLITICIZATION /DECASTEIZATION/DECOMMUNALIZATION OF WOMEN ISSUES IN INDIA.
Wake up call for indian women !As long as they are divided across caste,class, ideology and religion lines, there is not much hope for them.There is an urgent need for indian women to fail the current patriarchal conspiracy of dividing women on various grounds n thus aborting any possibility of rise of gender_solidarity and collective gender movement.

Friends ,new year has once again  brought us face to face with a stark unavoidable reality of Indian situation which all indian women activists and women  must  seriously ponder over .BANGALORE NEW YEAR MASS  MOLESTATION where so many women were molested on M.G ROAD during celebration.One  ever disappointing fact is the male predator on prowl in public spaces in India .More disconcerting is indian male leaders' sexist,misogynist,communalist mindset and statements. No more Jyotiba phules,Ambedkars,Gandhis,Nehrus,Vivekanands with their pro_woman views. We instead have PIGMY POLITICAL LEADERDS  BLAMING WOMEN ,WESTERN VALUES,'HINDUTVA FORCES 'FOR THIS TRAGIC INCIDENT.!!!

Gender issues time and again go to back ground_caste,religion come to the forefront.This is how indian women issues have never received top_priority.TIME TO RETHINK,REORIENT N CREATE A REAL INCLUSIVE FEMINIST MOVEMENT INCLUDING ALL_ EGALITARIAN WOMEN AND MEN !LET THIS BE OUR 2017 RESOLUTION.!

पथभ्रमित भारतीय स्त्रीवाद -आकलन 2017

👉भारतीय स्त्री=मनुष्य अथवा जाति/वर्ग/विचारधारा/धर्म की बंदिनी?👈यक्षिणी-प्रश्न 2017

कैसी विडंबना है दोस्तों,टी वी पर अबू आज़मी जैसे कई राजनैतिक नेता,कुछ खोखले धर्मपाखंडी बंगेलोर के नववर्ष-उत्सव (2017)में स्त्रियों के साथ यौन- दुर्व्यवहार की शर्मनाक घटना के लिए स्त्रियों के ही विरुद्ध लगातार मोर्चा संभाले हुए हैं-स्त्रियों के कपडें,आचरण,चरित्र,स्वछंदता और भी जाने क्या क्या। कुछ एक महारथी इसे धार्मिक रंगत भी दे रहे हैं।कल्पनातीत आक्रामकता,स्त्रीविरोधी विचार -विश्वास ही नहीं होता कि हम 21वीं शताब्दी के  भारत में हैं।मन तड़प कर पुकार उठता है-ज्योतिबा फुले,चक्रधर,विवेकानंद, अम्बेडकर, गांधी,नेहरू जैसे स्त्री-समर्थक महान पुरुषों को।कहाँ है हमारे  समाजसुधारक,हमारे राजनेता?कहाँ हैं सावित्रीबाई फुले,पंडित रमाबाई,ताराबाई शिंदे जैसी कोई कदावर स्त्रीवादी नेत्रियां,विचारक ,एक्टिविस्ट?आज हमारे देश की महानतम विफलता है -स्त्री-वर्ग की स्थिति और देश की स्त्रियों की स्थिति के प्रति  सामान्य उदासीनता!(सुधार की हर खुशफहमी स्त्री-संबंधी क्रूर आंकडें दूर कर देते हैं) अफ़सोस!हर 'रहनुमा' पुरुष अथवा स्त्री-नेता,बुद्धिजीवी,लेखक,एक्टिविस्ट्स -अपनी ही राजनीति में व्यस्त हैं-जाति,वर्ग ,विचारधारा और धर्म की ।स्त्री के असल मुद्दे उनके लिए कोई मायने नहीं रखते।

भारत में समकालीन प्रगतिवादियों,बुद्धिजीवियों-पुरुष एवं स्त्रियों - ने भी  स्त्री की गरिमा को  स्त्री अथवा व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित नहीं किया है- यहां स्त्री सवर्णvs दलित/आदिवासी है,निर्धन vs धनी, शहरी vs ग्रामीण,हिंदू vs अन्य धर्म की है।परिणामतः स्त्री-संबंधी  सामजिक,सांस्कृतिक सुधारों का कोई भी बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा।

आज स्त्री-आंदोलन को एक नयी दिशा देने की महती आवश्यकता है जहां उसे जाति, वर्ण,वर्ग,विचारधारा,धर्म के चंगुल से मुक्त कर  स्त्री की मानवीय गरिमा स्थापित करने का आंदोलन बनाया जाये।इसके लिए सब  संवेदनशील स्त्री-पुरुषों को मिल कर एक नवनिर्माण का नया आंदोलन चलाना होगा।क्या हम तैयार हैं ?