👉भारतीय स्त्री=मनुष्य अथवा जाति/वर्ग/विचारधारा/धर्म की बंदिनी?👈यक्षिणी-प्रश्न 2017
कैसी विडंबना है दोस्तों,टी वी पर अबू आज़मी जैसे कई राजनैतिक नेता,कुछ खोखले धर्मपाखंडी बंगेलोर के नववर्ष-उत्सव (2017)में स्त्रियों के साथ यौन- दुर्व्यवहार की शर्मनाक घटना के लिए स्त्रियों के ही विरुद्ध लगातार मोर्चा संभाले हुए हैं-स्त्रियों के कपडें,आचरण,चरित्र,स्वछंदता और भी जाने क्या क्या। कुछ एक महारथी इसे धार्मिक रंगत भी दे रहे हैं।कल्पनातीत आक्रामकता,स्त्रीविरोधी विचार -विश्वास ही नहीं होता कि हम 21वीं शताब्दी के भारत में हैं।मन तड़प कर पुकार उठता है-ज्योतिबा फुले,चक्रधर,विवेकानंद, अम्बेडकर, गांधी,नेहरू जैसे स्त्री-समर्थक महान पुरुषों को।कहाँ है हमारे समाजसुधारक,हमारे राजनेता?कहाँ हैं सावित्रीबाई फुले,पंडित रमाबाई,ताराबाई शिंदे जैसी कोई कदावर स्त्रीवादी नेत्रियां,विचारक ,एक्टिविस्ट?आज हमारे देश की महानतम विफलता है -स्त्री-वर्ग की स्थिति और देश की स्त्रियों की स्थिति के प्रति सामान्य उदासीनता!(सुधार की हर खुशफहमी स्त्री-संबंधी क्रूर आंकडें दूर कर देते हैं) अफ़सोस!हर 'रहनुमा' पुरुष अथवा स्त्री-नेता,बुद्धिजीवी,लेखक,एक्टिविस्ट्स -अपनी ही राजनीति में व्यस्त हैं-जाति,वर्ग ,विचारधारा और धर्म की ।स्त्री के असल मुद्दे उनके लिए कोई मायने नहीं रखते।
भारत में समकालीन प्रगतिवादियों,बुद्धिजीवियों-पुरुष एवं स्त्रियों - ने भी स्त्री की गरिमा को स्त्री अथवा व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित नहीं किया है- यहां स्त्री सवर्णvs दलित/आदिवासी है,निर्धन vs धनी, शहरी vs ग्रामीण,हिंदू vs अन्य धर्म की है।परिणामतः स्त्री-संबंधी सामजिक,सांस्कृतिक सुधारों का कोई भी बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा।
आज स्त्री-आंदोलन को एक नयी दिशा देने की महती आवश्यकता है जहां उसे जाति, वर्ण,वर्ग,विचारधारा,धर्म के चंगुल से मुक्त कर स्त्री की मानवीय गरिमा स्थापित करने का आंदोलन बनाया जाये।इसके लिए सब संवेदनशील स्त्री-पुरुषों को मिल कर एक नवनिर्माण का नया आंदोलन चलाना होगा।क्या हम तैयार हैं ?
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