यो भगतसिंह कौन जात था जी?
शहीदे-आज़म!
शहीदी दिवस पर
हो रहे हैं
भारी-भरकम
आयोजन,
चल रहे हैं
धुआंधार भाषण,
पहनाये जा रहे हैं
तुम्हारी प्रतिमाओं को
लाल,नीले
हरे,केसरिया
वस्त्र-आभूषण,
'बम-वालों' से
'बम-बम लहरी' वालों तक
कर रहे हैं सब
तुम्हारा महिमा-मंडन
पूजन-वंदन!
अनजानी आज़ादी के
तराने गाने वाले,
भारत के हों सौ टुकड़े
चिल्लाने वाले,
भारत माता की जय
नारे लगाने वाले,
पत्थर,राइफलें
उठाने वाले,
त्रिशूल,फरसे
चलाने वाले,
समितियां,एन-जी-ओ
बनाने वाले,
सारे जियाले
क्रांति-दूत,भ्रांति-पूत
कह रहे हैं
खुद को
तुम्हारा होनहार वंशज!
सोचती हूँ
मेरे भगतसिंह,
गर आज तुम्हें
बहरों को
सुनाने के लिए
फैंकना होता बम
तो कहाँ-कहाँ
और कितने बम
फैंकते तुम-
अमानवीय,षड़यंत्री-अड्डों
असेम्बलियों में
या फिर
अंधे,गूंगे, बहरे बने
स्वार्थ-निद्रा लीन
शहरों,गाँवों
जनपदों में भी
जो जब भी
आंख खोलते हैं
तो बोलते हैं
सिर्फ कुछ
चुनिंदा शब्द-
मैं, मेरा धर्म
मेरी जाति, मेरा वर्ग
लगी है जहां
अंधी दौड़,होड़
कहलाने की
पिछड़ा,अल्पसंख्यक!
आहत-मना मैंने
आज निश्चय कर
विस्तार से
सभाओं में ,मंचों से
किये हैं सांझे-
तुम्हारा दर्शन
तुम्हारा स्वप्न
तुम्हारी दृष्टि!
और अभी-अभी
एक नए उगते
युवा क्रांतिकारी
छात्र-नेता ने
पूछा है मुझसे
"न्यों तो बतलाओ
यो भगतसिंह
कौण जात था जी?"
(मेरे पास कोई उत्तर नहीं है-
आपके पास हो तो अवश्य बतलाइयेगा मित्रो)