Sunday, 30 June 2019

RASHMI BAJAJ'S REVIEW ARTICLE OF NARENDER MODI'S POETRY "SAKHTJAAN RAJNETA NARMDIL KAVI"


*सख़्तजां राजनेता, नर्मदिल कवि-नरेंद्र मोदी*  
     
                   ~ डॉ रश्मि बजाज

“ कुछ लिख जाए या छप जाए उससे साहित्यकार की श्रेणी में बैठने की योग्यता आ जाती है, मुझे ऐसा भ्रम नहीं है।अविरत बहती गंगा धारा की तरह मेरे भीतर भी साहित्य का प्रभाव बहता रहा हो,ऐसा सौभाग्य मुझे नहीं मिला। हां ,वर्षा ऋतु के बाद कुछ समय के लिए बहते झरनों की तरह कभी-कभार चल निकले झरने ने शब्दों का साथ खोज लिया है- यह शब्द- माला सहज रूप से देवी सरस्वती के चरणों में रखता हूं”- (प्रेमतीर्थ)
भारतीय साहित्य में प्रख्यात राजनीतिज्ञों द्वारा रचित बहुविषयक गद्य, आत्मकथा एवं काव्य का एक बड़ा कलेवर विद्यमान है। इसी परंपरा में भारतीय काव्य-श्रृंखला में सद्य  जुड़ी कड़ियां हैं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुजराती कविताओं का डॉ अंजना संधीर द्वारा कृत हिंदी अनुवाद- “आंख यह धन्य है” और अंग्रेज़ी में रवि मंथा द्वारा अनूदित काव्य-संकलन -“ए  जर्नी :पोयम्स बाय नरेंद्र मोदी”। “आंख यह धन्य है” के प्राक्कथन में मोदी ने लिखा है: “मेरे इस नीड़ में आपको भाव जगत मिलेगा और भावनाएं लहराएंगी”।दोनों संग्रहों की कविताएं हमारे समय के सर्वाधिक चर्चित एवं  सर्वधिक विवादास्पद राजनेता को ‘भीतर’ और बेहतर जानने का एक विश्वसनीय मौलिक स्रोत प्रतीत होती हैं। साथ ही यहां समीक्षक के लिए एक बड़ी चुनौती है कृतियों एवं ‘पोएटिक पर्सोना’ के निष्पक्ष एवं पूर्वाग्रहमुक्त विवेचन तथा विश्लेषण की!

इन संकलनों का मूल स्वर इनका प्रखर आशावाद, सकारात्मकता एवं जुझारूपन है ।कवि मोदी ‘पृथ्वी में स्वर्ग’ देखता है -यही दृष्टि उसकी ‘दौलत’ है।कांटों की परवाह किए बिना फूल की तरह विकसित और सुरभित होने वाले इस काव्यकार के ‘आंतरिक मौसम’में सदा ‘बसंत ऋतु का आभास’बना रहता है। वह उजाले की आस   लेकर अंधेरा उलीचता है और ढूंढ निकालता है ‘नवरंगीपरों वाला/ उजाला ही उजाला”. उसका घनीभूत आशावाद असंभव को संभव करता है : “हम पर्वत के ऊपर से सूरज बन/ मध्य रात्रि को भी उगते हैं”। कवि की आंखों में स्वप्न है : “तुम्हारे पास सपने हों या नहीं/ सपनों के बीज मैं अपनी धरती पर बीजता हूं” और उसक आह्वान है: “खंडहरों में से ढूंढो सपने /जीने के लिए अतिशय जरूरी है” किंतु उसके ये ‘इंद्रधनुषीय स्वप्न’ मिथ्या कल्पना -जगत के नहीं एक कर्म योगी के हैं: “ये सपने रोमांटिक नहीं है/ अपितु जीवन भर की तपस्या के हैं” और उसका उद्घोष है :  “तुम मुझे मेरे काम से ही जानो/ कार्य ही मेरा जीवन काव्य है”। सब चुनौतियां स्वीकार करता हुआ ,भाग्यवाद को मुखर रूप से अस्वीकार करता हुआ, अतीत एवं अनागत को भुला, ‘वर्तमान’ क्षण में स्थित और स्थिर होकर, संकल्प का ‘प्रकाश’ एवं ‘ऊर्जा’ लेकर वह गति -प्रगति का गीत गाता है क्योंकि ‘लाचारी मेरे खून में नहीं’।

संग्रहों का अन्य उल्लेखनीय भाव है मानव लोकोत्तर परमशक्ति में आस्था एवं आध्यात्मिक संवेदना की अभिव्यंजना। ईश्वरीय भाव में ही उसका ‘स्व’ विस्तार पाता है :  “अपने शरीर को, मन को, हृदय को प्रभु का प्रसाद ही मानता हूं और संपूर्ण विश्व मेरे आगोश में समा जाता है”। परम सत्ता उसके लिए एक सकारात्मक प्रेरकशक्ति है: “मेरे एक-एक कर्म के पीछे ईश्वर का हो आशीर्वाद”।वह कृतज्ञ एवं भावविभोर है :  “तुम्हारी कृपा से कांटे फूल बनते हैं”। कवि का हिंदुत्व के प्रति प्रेम एवं उसके हिंदुत्व की धारणा भी इन कविताओं में अभिव्यक्ति पाते हैं ।उसे सदा से गर्व है कि “मैं मानव हूं और हिंदू हूँ/ पल पल ऐसा अनुभव होता है /विशाल विराट सिंधु हूँ”। ‘मेरा जीवन गायत्री मंत्र बन जाए’ की प्रार्थना वाले कवि मोदी का हिंदुत्व एक उदार ,उदात्त एवं सर्वकल्याणकारी चिंतन के रूप में  समक्ष आता है: “जग में उजाला फैलाएंगे ,ऊंच-नीच के भेद टाल कर/ अपना शरीर पिघाल कर /मन में मंदिर रचेंगे /कोई शत्रु नहीं....  सबमित्र.... नव संवाद रचेंगे हम /एकता समता ममता को हम  यत्नपूर्वक संभालेंगे”। यह भक्ति भाव ‘हारे को हरिनाम’ नहीं अपितु परमसत्ता के प्रति वो प्रगाढ़  प्रेम है जो वस्तु जगत से पलायन का साधन न होकर कर्मठता एवं संघर्ष की शक्ति देता है।
 संग्रह की अनेक कविताएं सार्वभौमिक मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति एवं गरिमा से परिपूर्ण है।कवि को पसंद है ‘मानवता का सहवास / चाहिए प्रेम भरी ऊष्मा’। वह भली प्रकार जानता है कि ‘बिना प्रेम पंगु बन मानव लाचार ,पराधीन सा जीता है/ अभाव की एक डोरी ले /पल को पल से सीता है”।उसके विचार में “संप्रदायों में बंटता मानव /मानव से बनता है दानव” पंथ संप्रदाय से बेहतर सत्य है एकात्मकता क्योंकि “मानव तो बस है मानव”।  मोदी का हृदय व्यथित है  कि “मानव मानव से रूठा है /तन भूखे हैं ,मन टूटा है”। उसकी अदम्य इच्छा है: “मुझे सेतु बनना है/प्रेम का हेतु  बनना है” और उसके ‘मन का विस्तार’ है “यह समस्त संसार”।
राष्ट्रप्रेम कवि की प्राण- ऊर्जा है :”दिल में देशभक्ति की ज्वाला /है समुद्र में जलती अग्नि की तरह’’। ‘वंदे मातरम’ उसके लिए मात्र शब्द अथवा गीत नहीं अपितु ‘मंत्र’ है जो “विकास का राजमार्ग” है /प्रजा जीवन की हर सुबह की /प्रबुद्ध चेतना का स्वर है। कविता ‘कारगिल’ शहीदों के शौर्य एवं राष्ट्र के प्रति भावांजलि है जहां कवि को बर्फ के बहते झरने की गति में दीख पड़ता है “सुजलाम सुफलाम भारत का भाव”।कवि लिखता है- “मेरे गुजरात को प्रेम करे/ वह मेरी आत्मा”और “मेरे देश को प्रेम करे/ वह मेरा परमात्मा”। अनेक कविताएं शौर्य भाव और राष्ट्रप्रेम से अनुप्राणित हैं।

कवि मोदी का प्रकृति जगत से भी अत्यंत अंतरंग संबंध है ।प्रकृति से ही उसका बिंब एवं प्रतीक जगत प्रदीप्त है, चारू शब्द- चित्र दृष्टव्य हैं।सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कविता प्रकृति के संग एकरूपता अनुभव करना : “ वृक्ष मेरी आत्मा का अंग /वृक्ष मेरे अस्तित्व का पर्याय/ मेरा रहस्य...”। प्रकृति उसके लिए महान प्रेरणा स्रोत है: “आकाश को अपनी बाहों में लेने को/ प्रयत्नशील उछलता सागर/ मेरी प्रेरणामूर्ति है”, प्रकृति सत्य का दर्शन है: “अनंत काल से /प्रकृति में /कोई झूठ ना बोले”, प्रकृति प्रेम का आख्यान है: “ सूर्य की गति /सूर्य की मति/ सूर्य की दिशा /सब एकदम बरक रार/केवल प्रेम ...”।

कवि के आंतरिक जगत में विरोधाभासी एवं विलोम भावों की प्रबलता है तथा उनमें समन्वय बिठाना ही उसकी शक्ति है। “ऐसे देखो तो फकीर फक्कड़ /पर मन से मैं नवाबी हूं” वाला कवि ‘पहाड़ की तरह’ खड़ा रह सकता है और ‘समुद्र की तरह’ छलक भी सकता है ।वह ‘धरती की गोद में बैठा’ है पर ‘आंखों में आकाश उठाकर’ चलता है। कवि इन भावों के प्रति सकारात्मक रूप से सजग है ,यही संतुलन उसका साथ साध्य है: “स्थिरता और गति का समन्वय/ वही मेरी साधना है”l
संग्रहों  की कतिपय कविताएं कवि की उदासी एवं अकेलेपन का साक्ष्य भी प्रस्तुत करती हैं: “अपनी वेदना को आप ही संभालना / भरोसेमंद हो ऐसा कहां है कोई आदमी?” कभी ‘व्यथा बहती है ,आंसू गिरते हैं’ तो कभी ‘भर्रा जाता है कंठ याद से’। कवि ने जानी है पीड़ा ‘सपनों की सौगात’ की ‘राख’ हो जाने की ,’खिले बगीचे’ की जगह ‘कांटे’ पाने की और ‘सागर की लहर के किनारे जाकर रोने की’। मोदी के शोकाप्लावित हृदय, कोमलता ,संवेदनशीलता एवं भावुकता की मार्मिक अभिव्यक्ति है साहित्यकार मित्र रमेश पारेख के मृत्योपरान्त लिखी  गई कविता-“ भरी दोपहर में रात उगी है /आंखों में अंधेरा भरा है /मेरा मन दुख से कल्पता है/ आंसू मौन बहते हैं”। अपनी अदम्य जिजीविषा के साथ एक ककनूसी  पक्षी की भांति कवि स्वयं को फिर फिर पुनः सृजित करता है: जीवन संपूर्ण जी कर/ मैं चाहता हूं मरना”। समस्त विभीषिकाओं ,विसंगतियों एवं विषमताओं के बावजूद उसकी सकारात्मक दृष्टि में :पृथ्वी ये सुंदर है ,आंख ये धन्य है ,व्योम तो भव्य है /भरपूर ये शून्य है/ जिंदगी धन्य है, धन्य है...”


कभी -कभी कवि मोदी एक अलग दृष्टि वाला दार्शनिक बन कर भी समक्ष आता है:
Fearless of mind
A song endowed with tune
 A healthy love bound by soul
A visionary smile
The very wind ecstatic
As water flows unhindered
 The sky breathes fragrant
Each moment sacred blessed with fire

 Earth bringing love ,fragrant
 And  God my friend
 I dwell on each day
 Not the future ,not the past
Marked only with present moment
No  practices ,certainly no ways
Calm is the silence that holds sway
 In this moment ,beyond all ten directions
 It is in the 11th direction, the Sound of Music
    (‘Eleventh Direction’, “A Journey”)


निरर्थकता बोध ,नैराश्य, निषेध भाव एवं सांस्कृतिक शून्यता से संत्रस्त हमारे इस समय में नरेंद्र मोदी का काव्य सकारात्मकता , जीवट एवं जिजीविषापूर्ण संसार रचता है, ‘श्रृंगार शब्द‘ न होकर ‘नाभि से प्रकटी वाणी’ वाला यह ‘मैं- केंद्रित’ संकलन नरेंद्र मोदी के अंतर्मन से परिचय कराता है और उसके मानवीय रूप,दार्शनिक मनस्थिति को भी समक्ष लाता है जो ‘पॉलिटिकल परसोना’ में बहुत बार परिलक्षित नहीं हो पाता।कुछ कविताएं काव्यकला की दृष्टि से श्लाघनीय बन कर उभरती हैं ;बिंबो, प्रतीकों, उपमानों की संप्रेषणीयता एवं शब्द -चित्रों का लावण्य कविताओं को काव्य-सौष्ठव प्रदान करते हैं तो भावात्मक गहराई गाम्भीर्य। कुल मिलाकर यहां कविता का भावपक्ष ही कला पक्ष से अधिक सशक्त प्रतीत होता है|वास्तव में, इन कविताओं के पाठक की प्राथमिक रुचि ‘प्रधानमंत्री’ मोदी की कविताओं को पढ़ना है,’कवि’ मोदी की  नहीं।कवि मोदी का काव्यजगत नेता मोदी के विस्तार का ही एक प्रेरक अंग बन कर परिचय कराता है- उसके अनेक मानवीय पक्षों,संवेदनाओं,आस्थाओं,दार्शनिक दृष्टिकोण से।










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