*भाषा*
जन्मतः
खोज रही हूं
मैं वह भाषा
हर शब्द का
अर्थ हो जहां
केवल प्रेम
लिपि स्निग्धता
व्याकरण में
उमगती हो
चेतना की
शुभ्र अन्तःसलिला...
सौंदर्यशास्त्र
धड़कता हो जहां
हृदय के उन्मेष
आत्मा के स्पंदन में...
मेरे मित्रो!
गर न मिलूं तुम्हें मैं
लंबे अंतराल तक
शब्दों में
तो जान लेना
कि निकल गयी है
इक दीवानी
नई भाषा की
अन्वेषा-यात्रा पर!
~ 'कबीरन'
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