कैसा खूनी मंज़र है
हरेक आँख इक खंजर है!
खौल रहा हर इक इंसा
जाने क्या कुछ अंदर है!
हर चेहरा जैसे सहरा
रूह तक फैला बंजर है!
चैन जहां पा जाए दिल
मस्जिद है न मंदर है!
दरिया तेरी क्या गिनती
प्यासा आज समंदर है!
जीत के ये सारी दुनिया
खाली हाथ सिकंदर है!
-रश्मि बजाज
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