Tuesday, 29 December 2015

INDIA:P0EM

ऐ मेरे दोस्त!नया ख्वाब सजाना है हमें!
आ मेरे साथ,नया मुल्क बनाना है हमें!

हमें है आसमां पे लिखनी कहानी अपनी
वतन पे करनी है कुर्बान जवानी अपनी

भूख को, प्यास को, ज़ुल्मों को मिटाना है हमें
इक नया नक्श ,नया नक्शा बनाना है हमें
हर अँधेरे को बहुत दूर भगाना है हमें
दे के खूने_जिगर चराग जलाना है हमें

प्यासी रूहों को जामे_नूर पिलाना है हमें
हक़ औरत को भी इन्सां का दिलाना है हमें
हर एक सोज़ को अब साज़ बनाना है हमें
पाँव की बेड़ी को परवाज़ बनाना है हमें

हर विराने को गुलिस्तान हम बना देंगे
अब तो मरघट में भी इक बाग़ हम खिला देंगे

ईद_दीवाली को इक साथ मनाना है हमें
काबा_काशी को एक जगह बसाना है हमें
दहशतों वहशतों का दौर मिटाना है हमें
कभी बंसी तो कभी चक्र उठाना है हमें

नया मज़हब ,नया इंसान हम बनाएंगे
इक नया शहर,नया गांव हम बसाएंगे
कौम को नींद से खुदगर्ज़ी की जगायेंगे
ज़िन्दगी का नया इक फलसफा सिखाएंगे

अपने अंदर के दरिंदे को हराना है हमें
मीर_ग़ालिब के समन्दर में समाना है हमें
सूर_तुलसी के भक्ति_रस में नहाना है हमें
कबीर_संत के साधो को जगाना है हमें

ऐ मेरे दोस्त!नया ख्वाब सजाना है हमें!
आ मेरे साथ,नया मुल्क बनाना है हमें!

_____रश्मि बजाज

Friday, 18 December 2015

Monday, 23 November 2015

'VRINDAVAN_A PRISON'

Hindi poem by Rashmi Bajaj bringing out the misogynist sentiment in the famous religious place.

Saturday, 21 November 2015

FEMINIST HINDI POETRY

Post_postmodern indian woman_her mind intellect ,soul unravelled in poems

Thursday, 19 November 2015

RANI LAKSHMI BAI'S LOVE OF YOGA

Almost unknown aspect of Lakshmi Bai is her love for Yoga and her book(manuscript) on Yoga.

Tuesday, 10 November 2015

POEM On Diwali_'मन के दीपक':रश्मि बजाज

मन के दीपक अगर हम जला न सकें
तो कंदीलें जलाने से क्या फायदा
तम हृदय का अगर हम मिटा न सकें
अंगना_घर जगमगाने से क्या फायदा!

दीन को गर गले हम लगा न सकें
रोज़ मंदिर में जाने से क्या फायदा
हाथ अपना मदद को बढ़ा न सकें
पूजा_थाली उठाने से क्या फायदा!

सोज़ को साज़ गर हम बना न सकें
शेर लिखने_लिखाने से क्या फायदा
सूनी आँखों में सपने बसा न सकें
तो ग़ज़ल गुनगुनाने से क्या फायदा!

                                   रश्मि बजाज

Friday, 30 October 2015

KARVA CHAUTH POEM:RASHMI BAJAJ

नया भारत,नए रिश्ते,नई सोच,नयी स्त्री

Sunday, 25 October 2015

मस्जिद से बेदखल औरत पर रश्मि बजाज की कविता 'एक अज़ान'

जोड़ोगे जब अपने साथ औरत की भी एक अज़ान
सच मानों तब ही तुमको फल पाएंगे रमज़ान कुरआन!

गोपालदास नीरज के नाम रश्मि बजाज की पाती :

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाये
जिसमे औरत को भी इंसान बताया जाये!

Thursday, 22 October 2015

स्त्री_विमर्श की कविता:पाती नीरज के नाम

रश्मि बजाज

POEM ON DALITS GODDESS 'POCHAMMA' :RASHMI BAJAJ

Absolutely self_reliant ,unattached,auspicious pochamma,symbol of independent woman..

"NIRBHAY HO JAO DRAUPADI ":RASHMI BAJAJ

उत्तर_उत्तरआधुनिक भारतीय स्त्री:'राहें नई':कविता:रश्मि बजाज

पोस्ट_पोस्ट मॉडर्न भारतीय स्त्री जाना चाहती है पार मनु ही नहीं ,मार्क्स के भी:

POST_ POST MODERN INDIAN WOMAN :RASHMI BAJAJ'S POEM

She wishes to go beyond not merely the ancient misogynist scripturer Manu but also the Modern Messiah Marx.

नई भारतीय स्त्री:कविता :रश्मि बजाज

पोस्ट_पोस्ट मॉडर्न युग की भारतीय स्त्री जो जाना चाहती है मनु ही नहीं ,मार्क्स के भी पार_मनचाही अनजानी राहों पर।

स्त्री_सशक्तिकरण की सशक्त कवयित्री रश्मि बजाज

रश्मि बजाज की स्त्री_विषयक कविताओं पर दैनिक ट्रिब्यून  का मुख्य आलेख।

POETRY OF WOMEN EMPOWERMENT:RASHMI BAJAJ

Anaysis of  poet Rashmi Bajaj's women empowerment poetry in DainikTribune Lead Article.

स्त्री_सशक्तिकरण :रश्मि बजाज

रश्मि बजाज की स्त्री_सशक्तिकरण विषयक कविताओं पर दैनिक ट्रिब्यून का मुख्य आलेख।

WOMEN EMPOWERMENT IN INDIA: POET RASHMI BAJAJ

Analysis of Rashmi Bajaj's empowerment poems in dainik tribune leading article.

NEW INDIAN WOMAN :RASHMI BAJAJ

http://allpoetry.com/poem/10488765-New-Indian-Woman-by-rashmi-bajaj

Sunday, 27 September 2015

'गैय्या' कविता:रश्मि बजाज

इस गो_पालक एवं स्त्री_हंता युग में भारतीय स्त्री की अपने चिरप्रिय आराध्य  कान्हा से 'मन  की बात':

Thursday, 24 September 2015

EID poem

होगी ईद मुबारक तब
मस्जिद हो औरत की जब!

                          रश्मि बजाज

REAL EID

EID will be

Truly Blissful 

 When

Masjid opens

Her doors

To women...


Waiting for

My Eid

For aeons

I am

Havva's cursed daughter      

A woman...


            RASHMI BAJAJ 


 




Sunday, 20 September 2015

"मधुशाला" एक फेमिनिस्ट स्त्री की":रश्मि बजाज

"एक स्त्रीवादी कवयित्री की रची 21वीं शताब्दी की स्त्री की मधुशाला जहां पहली बार स्त्री मात्र साकीबाला न हो कर जीवनरस में सराबोर होकर झूमने वाली एक सम्पूर्ण मानव है।यह आज की स्त्री की जिजीविषा तथा जीवट का संगीतमय उत्सव है।अपने अनेक मनोरम मानववादी रूपों में उपस्थित ये मदिरा लिंगभेदपूर्ण रूढिवादी परम्पराओं तथा वैष्म्यपूर्ण सामाजिक एवं धार्मिक आस्थाओं को खंड विखण्ड करती एक साम्यपूर्ण व्यवस्था को स्थापित करती है_स्त्री की मधुयात्रा जन्म से मरण तक।"

                                 (पुस्तक_परिचय से उद्धृत)

प्रकाशक_आत्माराम एन्ड सन्ज़,देहली(2009)

Friday, 4 September 2015

'कृष्ण' पर कविता:रश्मि बजाज

कृष्ण, तुमने  अच्छा नहीं किया!अवतार' श्रीकृष्ण से आज की स्त्री का 'मानवीय'संवाद:

                     कृष्ण 

                कृष्ण
                तुमने अच्छा
                नहीं किया
                डाली जो परम्परा
                बढ़ा चीर
                द्रौपदी का

               कर दिए तुमने
               ग्लानि_उत्तरदायित्व मुक्त
               युधिष्ठिर भीष्म
               सभी सभागण
               कर डाली तुमने
               नपुंसक
               हमारी सारी
               पुरुष जाति

               बैठे हैं अब
               करते प्रतीक्षा
               आएगा अवतार
               करेगा रक्षा

               हर कूचा
               हर गली
               है अपमानित
               द्रौपदी...
               

Tuesday, 25 August 2015

Amrita Pritam poem tribute :Rashmi Bajaj

मृ ता रहेगी ज़िंदा...

माथे सजाये
सूरज की
ओजस्वी बिंदिया
कंठ पहने
चाँद तारों का
शुभ्र शीतल कुन्दनहार
वक़्त की
ड्योढ़ी में बैठी
अपने रूहानी चरखे पर
शब्दों के
तकुवे से
ख्वाबों की
इंद्रधनुषीय
पूनी कातती

ज़िन्दगी के
कैनवस पर
रस रंग बन
हर पल
झूमती बरसती

कविता को
जीवन बनाने की
तपस्या करती
जीवन को
कविता करने की
ज़ुर्रत करती
कभी'रोमांटिक',कभी'मिस्टिक'
कभी मॉडर्न बन
सबको हैराती,भरमाती
कभी तन,कभी मन
कभी आत्मा_
कितना कुछ
भिगो  जाती

साईं की
दरगाह पर
बनकर
अगरबत्ती जलती
शिव की
बाईं बगल बैठ
पार्वती का नृत्य देखती
दूर वादियों में गूंजती
कृष्ण की बांसुरी सुनती

इबादत को
महोब्बत का
इन्सानी जज़्बा
अता करती
महोब्बत को
इबादत की
बुलंदियां देती

वारिस शाह से
दर्द भरे सवाल पूछती
सारा शगुफ्ता को
गोद ले सहलाती दुलराती
निढाल मानवता का
माथा चूमती
लहू_लुहान जम्हूरियत के
ज़ख्मों पर मरहम रखती
बच्चों को,पेड़ों को
फलने फ़ूलने की
दुआएं देती
लाचार औरतों के
कैदी लबों को
आज़ादी की
सदायें देती

चेतन,अचेतन
महाचेतन का
अद्भुत संसार रचती
अमृता उस दुनिया की
औरत थी
जिसमें रहना चाहती है
स्त्री कीअन्तश्चेतना

अमृता नहीं थी
सिर्फ कविता
वह है
एक महाकाव्य

पानी,हवा,आग
आकाश,मिट्टी_सब जगह
छलकेगी,महकेगी
अमृता रहेगी
हमेशा ज़िंदा
सिर्फ इमरोज़ की
नज़्मों और कैनवस
में ही नहीं
हम सब की
इबादतों और मोहब्बतों में...

                          रश्मि बजाज,Rashmi Bajaj